Thursday, 13 December 2018

Rajputana | Chohan Raj Vans Ki Sakhai | चौहानों राजवंश की शाखाएँ

चौहानों की खांपें (शाखाएँ)

चौहान राजवश की शाखाएँ

चौहानों राजवंश की 24 प्रमुख ओर 115 उपशाखाएं हैं जो
निम्नानूसार है

चौहानों की प्रमुख 24 शाखाएँ… 1 . शकम्भरी 2. नाडोला , 3. सोनिगरा 4. हाडा, 5. देवडा. 6. खीची, 7. निर्वाण 8. भदौरिया , 9. मेनपुरिंया या पूर्बिया, 10. मादरेचा, 11. भंवरेचा, 12. संकलेचा 13. राजकुमार, 14. बालेचा, 15. चचेसरा या चांचेरा . 16. चन्दुक्र , 17. 'रोसिया 18. तलेसरा 19. बंकट 20. थंधरिया या थंधेला 21. मोहिल या मल्ल या मालानी 22. पावेचा या पाविया 23. सूरा 24 वत्स्त गोत्री °|



चौहानों की 115 उपशाखाएं-

चौहान, चाहिल, मोहिल, जोड चौहान, पूर्बिया चौहान, सांभरिया चौहान, भदौरिया चौहान, रायजादे चौहान, चाहड़दे चौहान, नाडोलिया, सोनगरा चौलान बोड़ा, रूप सिहोत मानसिहोत, चांदण, हापड़, बाधोड़ भाला बाधोड़, रोहेचा बाधोड़, बालेखा, अबली सोनगरा चौहान, भाद्रेचा, नार चौहान, धुंधेर (धधेर) , सूरा ओर गोयलवाल, पावेचा, हाड़ा-धुग्धलोत्त, मोहणोत, हत्थावत, हलूपोता, लौहराज, हरपालोता, जैतावत, खिजूरीका, नवंरगपोता, थारूड़, लालावत, जाबदू, सांवत्तका, आवावत, चूड़ावत, उदावत, नरबदपोता, भोमोत, हमीरका, मोकलोत, अर्जुनोत अखेपोता, रामका, जसा, दूदा, रावमलोत, सुंरतानोत, हरदाउत, भोजावत, इन्द्रशालोत, बेरीशालोत, छत्रशालोत, मोहकमसिंहोत, मोहसिंहोत, दीपसिंहोत, बहादुरसिहोत, सरदारसिंहोत, माधाणी मोहनसिंहोत माधाणी, जुझारसिंहोत माधाणी, प्रेमसिहोत माधाणी, किशोरसिंहोत माद्याणी ।

 देवड़ा चौहानों की खापें-

बावनगरा, देवड़ा, मायावला देवड़ा, बड़गामा देवड़ा, बागड़ीया देवड़ा, बसी देवड़ा, कींतावत देवड़ा, गोसलावत देवड़ा, डूंगरोत देवड़ा-रामावत, सबरावत, सूरावत, मेरावत, अमरावत, भीमावत व अर्जुनोत, कूंपावत-मांडणोत, बाजावत, हरराजोत, गांगावत, बेरावत, मालणावत, शिवसिंहोत देवड़ा-लोटाणचा देवडा, बालदा देवड़ा, लखाणोंत देवड़ा, लखावत देवडा पृथ्वीराजोत, सामीदासोत, प्रतापसिंहोत, सांमतसिंहोत, बालोत देवडा, हाथियोत देवड़ा, चीबा देवड़ा, आभा देवड़ा, सांचोरा चौहान-रामसिंहोत्त, भोजराजोत्त, पृथ्वीराजोत, तेजमालोत्त, इंसरदासोत, वेणीदासोत, नरहरदासोत सेसमलोत, सादूलोत कांपलिया चौहान, निर्वाण बागडीया चौहान बालीसा (बालेचा) चौहान, बालोत चौहान ।

चौहानों के गोत्र प्रवरादि 


वंश  -  अग्रिवंश

वेद   -  सामवेद

गोत्र   -  वत्स

वृक्ष    -  आशापाल

नदी    -   सरस्वती

पोलपात - दसोंदी

 इष्टदेव    - अचलेश्वर महादेव

कुलदेवी  - आशापुरां

 नगारा   -   रणजीत

निशान   -  पीला

झण्डा    -  सूरज, चांद, कटारी

शाखा    -   कौथुनी

पुरोहित  -  सनादय (चंदोरिया)

 भाट   -   राजोरा

धूणी     -   सांभर

भेरू      -   कालाभैरव

गढ़      -   रणथम्भोर

शुरु     -   वशिष्ट

तीर्थ    -   भृगु क्षेत्र

पक्षी   -   कपोत

ऋषि    -   शांडिल्य

नोबत   -   कालिका

 पितृ      -   लोटजी

प्रणाम   -    जयआशापुरी

विरद   -    समरीनरेश
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Wednesday, 12 December 2018

Satsain ka Fal | सत्संग का फल

सत्संग का फल

Satsin ka fal
Satsain Ka Fal

एक था मजदूर। मजदूर तो था, साथ-ही-साथ किसी संत महात्मा का प्यारा भी था। सत्संग का प्रेमी था।
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उसने शपथ खाई थी! मैं उसी का बोझ उठाऊँगा, उसी की मजदूरी करूँगा, जो सत्संग सुने अथवा मुझे सुनाये.
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प्रारम्भ में ही यह शर्त रख देता था। जो सहमत होता, उसका काम करता।
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एक बार कोई सेठ आया तो इस मजदूर ने उसका सामान उठाया और सेठ के साथ वह चलने लगा।
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जल्दी-जल्दी में शर्त की बात करना भूल गया। आधा रास्ता कट गया तो बात याद आ गई।
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उसने सामान रख दिया और सेठ से बोला:- “सेठ जी ! मेरा नियम है कि मैं उन्हीं का सामान उठाऊँगा, जो कथा सुनावें या सुनें। अतः आप मुझे सुनाओ या सुनो।
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सेठ को जरा जल्दी थी। वह बोला- “तुम ही सुनाओ।” मजदूर के वेश में छुपे हुए संत की वाणी से कथा निकली।
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मार्ग तय होता गया। सेठ के घर पहुंचे तो सेठ ने मजदूरी के पैसे दे दिये। मजदूर ने पूछा:- “क्यों सेठजी ! सत्संग याद रहा ?”
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“हमने तो कुछ सुना नहीं। हमको तो जल्दी थी और आधे रास्ते में दूसरा कहाँ ढूँढने जाऊँ ? इसलिए शर्त मान ली और ऐसे ही ‘हाँ… हूँ…..’ करता आया। हमको तो काम से मतलब था, कथा से नहीं।”
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भक्त मजदूर ने सोचा कि कैसा अभागा है ! मुफ्त में सत्संग मिल रहा था और सुना नहीं !
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यह पापी मनुष्य की पहचान है। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे.
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अचानक उसने सेठ की ओर देखा और गहरी साँस लेकर कहा:- “सेठ! कल शाम को सात बजे आप सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो जाओगे।
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अगर साढ़े सात बजे तक जीवित रहें तो मेरा सिर कटवा देना।”
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जिस ओज से उसने यह बात कही, सुनकर सेठ काँपने लगा।
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भक्त के पैर पकड़ लिए। भक्त ने कहा:- “सेठ! जब आप यमपुरी में जाएँगे तब आपके पाप और पुण्य का लेखा जोखा होगा, हिसाब देखा जाएगा।
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आपके जीवन में पाप ज्यादा हैं, पुण्य कम हैं। अभी रास्ते में जो सत्संग सुना, थोड़ा बहुत उसका पुण्य भी होगा।
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आपसे पूछा जायेगा कि कौन सा फल पहले भोगना है ? पाप का या पुण्य का ?
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तो यमराज के आगे स्वीकार कर लेना कि पाप का फल भोगने को तैयार हूँ पर पुण्य का फल भोगना नहीं है, देखना है।
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पुण्य का फल भोगने की इच्छा मत रखना।
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मरकर सेठ पहुँचे यमपुरी में। चित्रगुप्तजी ने हिसाब पेश किया।
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यमराज के पूछने पर सेठ ने कहा:- “मैं पुण्य का फल भोगना नहीं चाहता और पाप का फल भोगने से इन्कार नहीं करता।
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कृपा करके बताइये कि सत्संग के पुण्य का फल क्या होता है ? मैं वह देखना चाहता हूँ।”
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पुण्य का फल देखने की तो कोई व्यवस्था यमपुरी में नहीं थी। पाप- पुण्य के फल भुगताए जाते हैं, दिखाये नहीं जाते।
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यमराज को कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा मामला तो यमपुरी में पहली बार आया था।
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यमराज उसे ले गये धर्मराज के पास। धर्मराज भी उलझन में पड़ गये।
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चित्रगुप्त, यमराज और धर्मराज तीनों सेठ को ले गये। सृष्टि के आदि परमेश्वर के पास ।
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धर्मराज ने पूरा वर्णन किया। परमपिता मंद-मंद मुस्कुराने लगे। और तीनों से बोले:- “ठीक है. जाओ, अपना-अपना काम सँभालो।”
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सेठ को सामने खड़ा रहने दिया। सेठ बोला:- “प्रभु ! मुझे सत्संग के पुण्य का फल भोगना नहीं है, अपितु देखना है।”
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प्रभु बोले:- “चित्रगुप्त, यमराज और धर्मराज जैसे देव आदरसहित तुझे यहाँ ले आये और तू मुझे साक्षात देख रहा है,
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इससे अधिक और क्या देखना है ?”
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एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।
तुलसी सत्संग साध की, हरे कोटि अपराध।।
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जो चार कदम चलकर के सत्संग में जाता है, तो यमराज की भी ताकत नहीं उसे हाथ लगाने की।
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सत्संग-श्रवण की महिमा इतनी महान है. सत्संग सुनने से पाप-ताप कम हो जाते हैं। पाप करने की रूचि भी कम हो जाती है। बल बढ़ता है दुर्बलताएँ दूर होने लगती हैं।

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 ((((((( जय जय श्री राम )))))))

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Sunday, 9 December 2018

Top 20 Gk in Hindi Question And answer | Top 20 Gk In Hindi


Top 20 GK In Hindi Question & Answer

सवाल1 : कौन सा जानवर आँखे खोलकर सोता है ?
जवाब : बुरिया नामक मेंढ़क

सवाल2 : विश्व में कुल कितने देश है ?
जवाब : विश्व में कुल 195 देश हैं।

सवाल 3: स्पेन देश का राष्ट्रीय खेल कौन सा है ?
जवाब : सांड युद्ध

सवाल 4: भाखड़ा नांगल बांध किस नदी पर स्थित है ?
जवाब : सतलज नदी पर

सवाल 5 अंडमान निकाबार के किस जनजाति ने एक अमरिकि की हत्या कर दि जो प्रतिबंधित क्षेत्र मे प्रवेश कर रहे थे
जवाब- सेंटिनेलिज

सवाल 6 किस राज्य ने २० नवंबर को भूधार नामक कार्यक्रम शूभारंभ किया है
जवाब- आंध्रप्रदेश

सवाल 7  यूनिसेफ-भारत का यूंवा राजदूत नियूक्त्त किया गया है
जवाब- हिमा दास

सवाल 8 किस हवाई अड्डे को एयरसेवा चैपियन पूरस्कार प्रदान किया गया है
जवाब -चेन्नई अंतरराष्ट्रीय हवाईअङ्डा

सवाल 9 किस तिथि को विश्व शोचालय दिवस आयोजित किया गया
जवाब -19 नवंबर


सवाल 10 : सत्ययुग का सबसे बड़ा ज्ञानी आदमी कौन था ?
जवाब : रावण

सवाल 11  भारतीय नागरिकता के लिए एप्लाई करने से पहले भारत में कितने साल रहना जरुरी हैं
उत्तर- 5 साल

सवाल 12: कौन सी चीज है जो पानी में जलती है ?
जवाब : सोडियम पदार्थ पानी में जलती है।

सवाल 13: किसकी उपस्थिति के कारण गिरगिट रंग बदलता है ?
जवाब : वर्णकी लवक

सवाल 14: प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना कब प्रारम्भ हुई थी ?
जवाब : 9 मई, 2015

सवाल 15: स्वच्छ सर्वेक्षण में यूपी का कौन सा जिला शामिल नहीं है ?
जवाब : इटावा।

सवाल 16 इंटरपोल या अंतरराष्टीय पुलिस एजेंसी का मुख्यालय कहा" स्थित हैं
जवाब-फ्रांस

सवाल 17 भारत का सबसे बडा शुष्क बंदरगाह किस जगह बनाया जाएगा
जवाब- कोचीन शिपयार्ड कोच्चि

सवाल 18 2018 का मैन बुकर पुरस्कार किसने जीता है
जवाब-एना बर्न्स

सवाल 19 यूथ ओलपिंक 2018 में भारत का पहला स्वर्ण पदक किसने जीता
जवाब-जेरेमी लालरिन्नूगा

सवाल 20 रसायन विज्ञान में 2018 नोबेल पुरस्कार किस क्षेत्र मे दिया गया है
जवाब-एंजाइम रिसर्च

सवाल 21: भारत का सबसे प्राचीन शहर कौन सा है ?
जवाब.  Comment Kare

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Thursday, 6 December 2018

Guru sisy तीन गुरु एक प्रेरक प्रसंग

तीन गुरु एक प्रेरक प्रसंग।
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बहुत समय पहले की बात है, किसी नगर में एक बेहद प्रभावशाली महंत  रहते थे । उन के पास शिक्षा लेने हेतु दूर दूर से शिष्य आते थे। एक दिन एक शिष्य ने महंत से सवाल किया, ” स्वामीजी आपके गुरु कौन है ?

आपने किस गुरु  से शिक्षा प्राप्त की है ?” महंत शिष्य का सवाल  सुन मुस्कुराए और बोले, ” मेरे हजारो गुरु हैं ! यदि मै उनके नाम गिनाने बैठ जाऊ तो शायद महीनो  लग जाए। लेकिन फिर भी मै अपने तीन गुरुओ के बारे मे तुम्हे जरुर बताऊंगा ।

मेरा पहला गुरु था एक चोर। एक बार में रास्ता भटक गया था और जब दूर किसी गाव में पंहुचा तो बहुत देर हो गयी थी। सब दुकाने और घर बंद हो चुके थे। लेकिन आख़िरकार मुझे एक आदमी मिला जो एक दीवार में सेंध लगाने की कोशिश कर रहा था।

मैने उससे पूछा कि मै कहा ठहर सकता हूं, तो वह बोला की आधी रात गए इस समय आपको कहीं कोई भी आसरा मिलना बहुत मुश्किल होंगा, लेकिन आप चाहे तो मेरे साथ आज कि रात ठहर सकते हो। मै एक चोर हूं और अगर एक चोर के साथ रहने में आपको कोई परेशानी नहीं होंगी तो आप मेरे साथ रह सकते है।

“वह इतना प्यारा आदमी था कि मै उसके साथ एक रात कि जगह एक महीने  तक रह गया ! वह हर रात मुझे कहता कि मै अपने काम पर जाता हूं, आप आराम करो, प्रार्थना करो।

 जब वह काम से आता तो मै उससे पूछता की कुछ मिला तुम्हे? तो वह कहता की आज तो कुछ नहीं मिला पर अगर भगवान ने चाहा तो जल्द ही जरुर कुछ मिलेगा। वह कभी निराश और उदास नहीं होता था, और हमेशा मस्त रहता था। कुछ दिन बाद मैं उसको धन्यवाद करके वापस आपने घर आ गया|

जब मुझे ध्यान करते हुए सालों-साल बीत गए थे और कुछ भी नहीं हो रहा था तो कई बार ऐसे क्षण आते थे कि मैं बिलकुल हताश और निराश होकर साधना छोड़ लेने की ठान लेता था। और तब अचानक मुझे उस चोर  की याद आती जो रोज कहता था कि भगवान ने चाहा तो जल्द ही कुछ जरुर मिलेगा और इस तरह मैं हमेशा अपना ध्यान लगता और साधना में लीन रहता|

और मेरा दूसरा गुरु एक कुत्ता था। एक बहुत गर्मी वाले दिन मै कही जा रहा था और मैं बहुत प्यासा था और पानी के तलाश में घूम रहा था कि सामने से एक कुत्ता  दौड़ता हुआ आया। वह भी बहुत प्यासा था। पास ही एक नदी थी। उस कुत्ते ने आगे जाकर नदी में झांका तो उसे एक और कुत्ता पानी में नजर आया जो की उसकी अपनी ही परछाई थी। कुत्ता उसे देख बहुत डर  गया।

 वह परछाई को देखकर भौकता और पीछे हट जाता, लेकिन बहुत प्यास लगने के कारण वह वापस पानी  के पास लौट आता। अंततः, अपने डर के बावजूद वह नदी में कूद पड़ा और उसके कूदते ही वह परछाई भी गायब हो गई। उस कुत्ते के इस साहस को देख मुझे एक बहुत बड़ी सिख मिल गई। अपने डर के बावजूद व्यक्ति को छलांग लगा लेनी होती है। सफलता उसे ही मिलती है जो व्यक्ति डर का साहस से मुकाबला करता है।”

और मेरा तीसरा गुरु एक छोटा बच्चा है।
मै एक गांव से गुजर रहा था कि मैंने देखा एक छोटा बच्चा  एक जलती हुई मोमबत्ती ले जा रहा था। वह पास के किसी मंदिर में मोमबत्ती रखने जा रहा था। मजाक में ही मैंने उससे पूछा की क्या यह मोमबत्ती तुमने जलाई है ?

वह बोला, जी मैंने ही जलाई है। तो मैंने उससे कहा की एक क्षण था जब यह मोमबत्ती बुझी हुई थी और फिर एक क्षण आया जब यह मोमबत्ती जल गई। क्या तुम मुझे वह स्त्रोत दिखा सकते हो जहा से वह ज्योति आई ?

” वह बच्चा हँसा और मोमबत्ती को फूंख मारकर बुझाते हुए बोला, अब आपने ज्योति को जाते हुए देखा है। कहा गई वह ? आप ही मुझे बताइए। “ “मेरा अहंकार चकनाचूर हो गया, मेरा ज्ञान जाता रहा। और उस क्षण मुझे अपनी ही मूढ़ता का एहसास हुआ। तब से मैंने कोरे ज्ञान से हाथ धो लिए। “

मित्रो, शिष्य होने का अर्थ क्या है ? शिष्य होने का अर्थ है पुरे अस्तित्व के प्रति खुले होना। हर समय हर ओर से सीखने को तैयार रहना।कभी किसी कि बात का बूरा नहि मानना चाहिए, किसी भी इनसान कि कही हुइ बात को ठंडे दिमाग से एकांत में बैठकर सोचना चाहिए के उसने क्य क्या कहा और क्यों कहा तब उसकी कही बातों से अपनी कि हुई गलतियों को समझे और अपनी कमियों को दूर् करे| जीवन का हर क्षण, हमें कुछ न कुछ सीखने का मौका देता है। हमें जीवन में हमेशा एक शिष्य बनकर अच्छी बातो को सीखते रहना चाहिए।

यह जीवन हमें आये दिन किसी न किसी रूप में किसी गुरु से मिलाता रहता है , यह हम पर निर्भर करता है कि क्या हम उस महंत की तरह एक शिष्य बनकर उस गुरु से मिलने वाली शिक्षा को ग्रहण कर पा रहे हैं की नहीं !

गुर बिनु भव तरइ न कोई ।
जौं बिरंचि संकर सम होई।।
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Har Har Mahadev Puja ॐ नमः शिवाय जी, हर हर महादेव जी

।। भील-भीलनी की शिव भक्ति ।।
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सिंहकेतु पांचाल देश का एक राजा था. राजा बहुत बड़ा शिवभक्त था. शिव आराधना और शिकार उसके दो चीजें प्यारी थीं. वह शिकार खेलने रोज जंगल जाता था.
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एक दिन घने जंगल में सिंहकेतु को एक ध्वस्त मंदिर दिखा. राजा शिकार की धुन में आगे बढ गया पर सेवक भील ने ध्यान से देखा तो वह शिव मंदिर था जिसके भीतर लता, पत्रों में एक शिवलिंग था.
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भील का नाम चंड था. सिंहकेतु के सानिध्य और उसके राज्य में रहने से वह भी धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया था. चबूतरे पर स्थापित शिवलिंग जो कि अपनी जलहरी से लगभग अलग ही हो गया था वह उसे उखाड़ लाया.
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चंड ने राजा से कहा- महाराज यह निर्जन में पड़ा था. आप आज्ञा दें तो इसे मैं रख लूं, पर कृपा कर पूजन विधि भी बता दें ताकि मैं रोज इसकी पूजा कर पुण्य कमा सकूं.
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राजा ने कहा कि चंड भील इसे रोज नहला कर इसकी फूल-बेल पत्तियों से सजाना, अक्षत, फल मीठा चढाना. जय भोले शंकर बोल कर पूजा करना और उसके बाद इसे धूप-दीप दिखाना.
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राजा ने कुछ मजाक में कहा कि इस शिवलिंग को चिता भस्म जरूर चढ़ाना और वो भस्म ताजी चिता राख की ही हो. फिर भोग लगाकर बाजा बजाकर खूब नाच-गाना किया करना.
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शिकार से राजा तो लौट गया पर भील जो उसी जंगल में रहता था, उसने अपने घर जाकर अपनी बुद्धि के मुताबिक एक साफ सुथरे स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और रोज ही पूजा करने का अटूट नियम बनाया.
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भीलनी के लिए यह नयी बात थी. उसने कभी पूजा-पाठ न देखी थी. भील के रोज पूजा करने से ऐसे संस्कार जगे की कुछ दिन बाद वह खुद तो पूजा न करती पर भील की सहायता करने लगी.
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कुछ दिन और बीते तो भीलनी पूजा में पर्याप्त रुचि लेने लगी. एक दिन भील पूजा पर बैठा तो देखा कि सारी पूजन सामग्री तो मौजूद है पर लगता है वह चिता भस्म लाना तो भूल ही गया.
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वह भागता हुआ जंगल के बाहर स्थित श्मशान गया. आश्चर्य आज तो कोई चिता जल ही नहीं रही थी. पिछली रात जली चिता का भी कोई नामो निशान न था जबकि उसे लगता था कि रात को मैं यहां से भस्म ले गया हूं.
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भील भागता हुआ उलटे पांव घर पहुंचा. भस्म की डिबिया उलटायी पलटाई पर चिता भस्म तनिक भी न थी. चिंता और निराशा में उसने अपनी भीलनी को पुकारा जिसने सारी तैयारी की थी.
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पत्नी ने कहा- आज बिना भस्म के ही पूजा कर लें, शेष तो सब तैयार है. पर भील ने कहा नहीं राजा ने कहा था कि चिता भस्म बहुत ज़रूरी है. वह मिली नहीं. क्या करूं ! भील चिंतित हो बैठ गया.
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भील ने भीलनी से कहा- प्रिये यदि मैं आज पूजा न कर पाया तो मैं जिंदा न रहूंगा, मेरा मन बड़ा दुःखी है और चिन्तित है. भीलनी ने भील को इस तरह चिंतित देख एक उपाय सुझाया.
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भीलनी बोली, यह घर पुराना हो चुका है. मैं इसमें आग लगाकर इसमें घुस जाती हूं. आपकी पूजा के लिए मेरे जल जाने के बाद बहुत सारी भस्म बन जायेगी. मेरी भस्म का पूजा में इस्तेमाल कर लें.
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भील न माना बहुत विवाद हुआ. भीलनी ने कहा मैं अपने पतिदेव और देवों के देव महादेव के काम आने के इस अवसर को न छोड़ूंगी. भीलनी की ज़िद पर भील मान गया.
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भीलनी ने स्नान किया. घर में आग लगायी. घर की तीन बार परिक्रमा की. भगवान का ध्यान किया और भोलेनाथ का नाम लेकर जलते घर में घुस गयी. ज्यादा समय न बीता कि शिव भक्ति में लीन वह भीलनी जलकर भस्म हो गई.
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भील ने भस्म उठाई. भली भांति भगवान भूतनाथ का पूजन किया. शिवभक्ति में घर सहित घरवाली खो देने का कोई दुःख तो भील के मन में तो था नहीं सो पूजा के बाद बड़े उत्साह से उसने भीलनी को प्रसाद लेने के लिये आवाज दी.
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क्षण के भीतर ही उसकी पत्नी समीप बने घर से आती दिखी. जब वह पास आयी तो भील को उसको और अपने घर के जलने का ख्याल आया. उसने पूछा यह कैसे हुआ. तुम कैसे आयीं ? यह घर कैसे वापस बन गया ?
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भीलनी ने सारी कथा कह सुनायी. जब धधकती आग में घुसी तो लगा जल में घुसती जा रही हूं और मुझे नींद आ रही है. जगने पर देखा कि मैं घर में ही हूं और आप प्रसाद के लिए आवाज लगा रहे हैं.
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वे यह सब बातें कर ही रहे थे कि अचानक आकाश से एक विमान वहां उतरा, उसमें भगवान के चार गण थे. उन्होंने अपने हाथों से उठा कर उन्हें विमान में बैठा लिया.
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गणों का हाथ लगते ही दोनों के शरीर दिव्य हो गए. दोनों ने शिव-महिमा का गुणगान किया और फिर वे अत्यंत श्रद्धायुक्त भगवान की आराधना का फल भोगने शिव लोक चले गये.
(स्कंद पुराण की कथा)

।।ॐ नमः शिवाय जी, हर हर महादेव जी
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Jai Hanuman ji जय कपिल महामुनी राम कहे तो बंधन टूटे’

*जय कपिल महामुनी*
*एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?*

*तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।*

*तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए। गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की सांस ली। रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है, शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया, तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’। अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता
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राजपुत भाटी वंश की प्रमुख खांपे ( शाखाएँ )

भाटी वंश की प्रमुख रियासत जैसलमेर के राज्य चिह्न में एक
ढाल, खंजन पक्षी, ढाल के दोनों तरफ हिरण, बीच में बूर्जे और' एक बलिष्ट पुरूष की भुजा में एक तरफ से मुडा हूआ भाला अंकिन है । नीचे छत्राला यादव पति वाक्य अंकित है जेसलमेर का झंडा भगवा रंग का है और बीच मे राज्य चिह्न अंकितहै ।


भाटियों के गोत्र प्रवरादि

वश - चंद्रवंश

 कुल परम्पण - यदू

कुलदेवता - लक्ष्मीनाथजी

कुलदेवी -  सागिया

इष्टदेव - श्रीकृष्ण

वेद - यजुर्वेद

गोत्र - अत्रि

छत्र - मेघाडम्बर

ध्वज भगवा पीला रंण

ढोल - भंवर

नक्कारा - अग्नजोत (अणजीत)

गूरू -  रतननाथ

पुरोहित - पुष्करणा ब्राहाण

 पोलपात - रतनू चारण

नदी - यमुना

वृक्ष - पीपल और कदम्ब

 राग -  मांड

माला - वैजयन्ती

'विरुद - उत्तर भड़ किवाड़ भाटी

अभिवादन - जयश्री कृष्ण


भाटियो की खांपे ( शाखाएँ )
 । . भाटी
2. भाटी यादव-अभोरिया भाटीं, गोगली भाटी, सिंघवार भाटी,
लडूवा भाटी, चहल भाटी, खंगार भाटी, धूकड़ भाटी, बुद्ध भाटी, धाराधर भाटी, कूलरिया भाटी, लोहा भाटी, उतैराव भाटी, चनहड़ भाटी, खापरिया भाटी, थहीम भाटी, जेतुग भाटी, घोटक भाटी, चेदू भाटी, गाहाड़ भाटी, पोहड़ भाटी, छेना भाटी, अटैरण भाटीं, लहुवा भाटी, लपोड़ भाटी, पाहू भाटी, इणधा भाटी, मूलपसाव, धोवाभाटी, पावसणा भाटी, 'अबोहरिया भाटी, राहड़ भाटी, हटा भाटी, भीया भाटी, बानर भाटी, पलासिया भाटी, मोकल भाटी, महाजाल भाटी, जसोड़ भाटी, जयचन्द भाटी, सिहड़ भाटी, अड़कमल भाटी. जैतसिंहोत भाटी, चरड़ा भाटी, लूणराव भाटी, कान्हड़ भाटी, ऊनड़ भाटी, सता भाटी, कीता भाटी, गोगादे भाटी, हमीर भाटी, हम्मीरोत भाटी, अर्जुनोत्त भाटी, केहरोत भाटी, सोम भाटी, रूपसिंहोत भाटी, मेहजलं भाटी, जेसा भाटी, सांवतसी भाटी, एपिया भाटी, तेजसिंहोन भाटी, साधर भाटी, गोपालदे भाटी, लाखण (लखमणा) भाटी, राजधर भाटी, परबत भाटी. हक्का भाटी, कुम्भा भाटी, केलायचा भाटी, भेसडेचा भाटी, सातलोत भाटी, मदा भाटी, ठाकृत्रसिंहोत भाटी, देवीदासोत भाटी, दूदा भाटी, जेत्तसिंहोत भाटी, बेरीशालोत भाटी, ल्लूणकणोंत्तभाटी, दीदा भाटी, मालदेवोत , खेत्तसिंहोत्त भाटी, नारायणदायोन भाटी, सगतहोत भाटी, -आखेराजोत भाटी, कानोत, पृथ्वीराजोत भाटी, उदयसिंहोत्त भाटी, दूदावत भाटी, तेजमालोत भाटी, गिरधारीदासोत्त भाटी, वीरमदेवोत्त माटी, रावलोत माटी, रावलोत देरावरिया भाटी, किलण भाटी, बिक्रमाजित केलण भाटी, शेखसरिया भाटी, हरभम भाटी, नेतावत भाटी, किशनावत भाटी, खीया भाटी-जेतावत, करणोत, धनराजोत्त माटी, बरसिह भाटी-वाला, सातल दूर्जनसालोन भाटी, पूणलिया भाटीं, बिदा भाटी, हमीर भाटी, शूरसेन यादव-बागड़िया, बनाफर छोकर.  की निम्न खापें

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क्षत्रियो के कुल 36 वंश नियत हुए जिनमें 16 सूर्यवंशी, 16 चन्द्रवंशी

अलग-अलग जातियाँ काइम होने के दर्मियानी समय में क्षत्रियो के कुल 36 वंश नियत हुए जिनमें 16 सूर्यवंशी, 16 चन्द्रवंशी
और 4 अग्निवंशी थे। इन छत्तीस वंशों में से बहुत से तो नष्ट हो गये और कई बंशों की प्रतिशाखाओं को लोगों ने जुदा वंश समझन लिया। इस गड़बड़ से छत्तीस वंशों की गणना का क्रम भंग हो गया। कुमारपालचरित्र काव्य में 36 वंशों की गणना लिखी है


छत्तीसराजवंशों की सूची
1. गूहील (गहलोत), 2, प्रमार (पंवार), 3. चोहान, 4.
चालुक्य ( सोलंकी),5. राठौड़, 6. तुनूप्रर7बडगूजर8. प्रतिहार
(परिहार), 9. झाला, 10. यादव,11  कछवाह12गोड़13.
सेंगर, 14. बल्ला, 15. खुखार (खाखार), 16. चावड़ा, 17. दहिया,18. दाहिम, 19. वैश्य (वैस) 20. घेरवार (गहरवाल), 21. निकुम्प (निकुंभ), 22. देवत23. जोहिया, 24. सिकरवार,25. डाबरी (डाभीया), 26. डोड, 27. मोरी (मौर्य), 28. मोकारा29. अभिया (अभीरा), 30, काले हीरक (काल चोदक हृदयवंशी), 31. अग्नि पाल, 32. आप्त वारिया (सरजा). 33 . कुल, 34. मनुटवाल (मनतवाल) 35. माल्लिया 36. चाहिल।





सूर्यवंशी क्षत्रीय
राठोड़, कछवाहा ,गुहिलोत, बडगूजर, सिकरवाल, निकूम्भ, श्रीनेत, नेवतनी, कण्डवार, निशान, निमी वंश, नन्द वंश, बैस, विसेन, गोतम,गोड़, दिक्षित, काकन, गोहील, सिंधेल, गर्गवंशी, लोहतमी, धाकर, उदमतिया, काकतिय, निमूड़ी, किनवार, चन्दोसिया, रावत, पूण्डीर, भोसले, बल्ला

चन्द्रवशी क्षत्रिय
सोमवश, यादव, तंवर, हेहय, कलचुरी, कोशिक, सैगर, चन्देल, गहरवाल, बेरूआर, जानवार, झाला, बिलादरिया, भाटी, बनाफर, तिलोरा, भारद्वज, स्वाति, सरनिहा, बुन्देला

अग्निवंशी क्षत्रिय
परमार, पंवार, सांखला, भायल, सोढ़ा, सोलंकी, पड़ीयार, इन्दा, चोहान, हाडा, खीची, देवड़ा,उज्जेनिया पंवार, दोगाई, चावड़ा, केलवाड़, जेठवा, हूल, दहिया,

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